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लेखनी कहानी -27-Apr-2022 सागर की गोद में

भाग 2 


तरू सीधे डॉक्टर आनंद के पास ओपरेशन थियेटर में पहुंच गई , सब मरीजों को छोड़ छाड़ कर । उसे देखकर आनंद ने खुशी से झूमते हुये उसके होठों को चूम लिया ।
"बड़ी देर लगा दी मेरी जान । तुम्हें क्या पता कि मेरे लिए एक एक पल काटना कितना मुश्किल हो रहा था" ? अधीर होते हुये आनंद ने कहा ।

तरू ने एक तिरछी निगाह आनंद पर फेंकते हुए कहा "आपने बुलाया था तो क्या मैं ऐसे ही चली आती" ? 

आनंद चौंकते हुए बोला "अच्छा ! मेरे बुलाने पर क्या कोई विशेष तैयारी करनी पड़ती है" ? अब आनंद उसे छेड़ने लगा ।

तरू के होठों पर एक कातिल मुस्कान तैर गई । "आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे आपको पता ही नहीं है कि आपको क्या क्या पसंद है ? जनाब तो याद रखते नहीं मगर हमें तो रखना पड़ता है ना । अब आपकी पसंद के हिसाब से तैयार होकर आना था , इसलिए थोड़ी देर हो गई । फिर खास "मकसद" के लिए "निमंत्रण" था तो शॉवर तो लेकर आना ही था" । अब तरू की नजरों में शरारत ही शरारत भरी हुई थी । 

आनंद खुश होते हुए बोला "अरे, इतना ध्यान रखती हो तुम मेरा ? सुनकर बहुत अच्छा लगा" । 
"आपके लिये तो हम कुछ भी कर सकते हैं, सर । आप कोई साधारण आदमी थोड़े ही हैं । आप तो बहुत खास हैं हमारे लिए" । अब वह खिलखिला पड़ी थी । 

डॉक्टर आनंद ने फ्रिज खोला और "वोदका" निकाल कर एक पैग बनाया और तरू के हाथ में पकड़ाते हुए कहा "लीजिए, मधुशाला के नाम आज का जाम" । 

एक पैग देखकर तरू चौंकी "क्या आप नहीं लेंगे" ? 
"जब सामने पूरी मधुशाला हो तो कौन कमबख्त एक जाम लेगा" । आंख मारते हुए आनंद ने कहा 
"ओह सर, यू आर सीरीयसली माई फेवरेट पार्टनर । पता है सर, कभी कभी तो मैं सोचती हूँ कि आपको डॉक्टर किसने बना दिया ? और वो भी न्यूरोसर्जन ! आपको तो कोई कवि या शायर होना चाहिए था" । एक सिप लेते हुए तरू बोली । 

अब आनंद ने एक सिगरेट निकाल ली और धुंए के छल्ले बनाता हुआ कहने लगा "तुम सच कहती हो तरू । पर इसमें मेरा कुछ कमाल नहीं है । तुम्हें सामने देखकर ऑटोमेटिक "रोमांस" छलांगें मारने लगता है । सागर उफनने लगता है और शायरी खुद ब खुद निकलने लगती है । तुम तो वो चीज हो कि अगर पत्थर भी तुम्हें देख ले तो वो भी शायरी करने लग जाये । और ..." 
"बस बस बस । लगता है कि आज तो जनाब "तरू महाकाव्य" ही लिखने बैठ गए हैं । इतनी तारीफ के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सर । वैसे इतनी तारीफ की हकदार नहीं हूं मैं" । तरू ने आखिरी सिप लेते हुए कहा । 
"तुम क्या चीज हो, यह हमसे पूछो मेरी जान" । आनंद ने तरू को बांहों में कसते हुए कहा ।

वोदका का असर होने लगा था । तरू का बदन अकड़ने लगा था । आनंद तो पहले से ही सुरूर में था तो फिर देर किस बात की ? ऐसा नहीं है कि ओपरेशन थियेटर पहली बार "बैडरूम" बनने जा रहा था , यहां तो अक्सर ऐसा होता ही रहता है । 

अचानक तरू को कुछ याद आया "सॉरी सर, आज मेरे पास "प्रोटेक्शन" नहीं है । मैं पर्स में रखना भूल गई" । 

आनंद कुछ सोचते हुए बोला "नो प्रॉब्लम । अभी इंतजाम हो जाएगा" । 
"वो कैसे" ? 
"अरे, विभा है ना । उसके पास होगा । अभी मंगवा देता हूं" । "कौन विभा सर" ? 
"अरे, नर्स है मेरी । वो ओ टी के बाहर खड़ी खड़ी हमारी बातें सुन रही होगी । बड़ी चालू चीज है" । आनंद ने तरू के कान में फुसफुसाते हुए कहा । 
"ओह माई गॉड । इतनी हिम्मत एक नर्स की" ? 
"ना ना । हिम्मत मत कहो । ख्वाहिश ही कहो । आखिर वो भी तो एक औरत ही है ना । उसकी भी तो कुछ जरूरतें होंगी ?  वो भी तो चाहती होगी कि कभी कोई बादल उसके आंगन में उतरकर उसके घर में सावन ला दे । बस, इतनी सी तो ख्वाहिश है उसकी" । 
"आप तो ऐसे कह रहे हैं जैसे आप सब कुछ जानते हैं उसके बारे में । कैसे जानते हैं आप ? क्या किसी का दिल पढ़ना आता है आपको" ? तरू अब मूड में आ गई थी ।

आनंद कुछ देर खामोश रहा फिर कहने लगा "चलो आज तुम्हें कुछ दिखाते हैं" । और उसने सामने लगा स्क्रीन ऑन कर दिया । उसमें सोलह सीसीटीवी की पिक्चर दिखने लगी । एक कैमरे से ओटी के बाहर का नजारा भी दिख रहा था । वाकई , ओटी के बाहर एक नर्स दरवाजे पर कान लगाये खड़ी थी । तरू को बड़ा आश्चर्य हुआ 
"कुछ कहते क्यों नहीं उस बदमाश को ? ये कौन सा तरीका है" ? 

आनंद के चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई । कहने लगा "हम लोग कौन से सामाजिक मूल्यों का निर्वहन कर रहे हैं ? हम भी तो स्वच्छंद जीवन जी रहे हैं । अब तुम ही बताओ कि ओटी "इस काम" के लिए है क्या ? जब हम गलत हैं तो किसी और को कैसे टोक सकते हैं ? और फिर बेचारी की ख्वाहिश भी क्या है ? उसे भी तो वही चाहिए जो बाकी की औरतों को चाहिए । बस फर्क इतना सा है कि वह शादीशुदा है जबकि हम लोग "बैचलर" हैं । नहीं मिलती होगी उसे अपने पति से संतुष्टि ? और हमें उस पर इतना ध्यान देने की जरूरत भी क्या है ? वह कोई जबरदस्ती तो करती नहीं है । मेरे और तुम्हारे संबंधों को वह अच्छी तरह से जानती है । ओटी में तुम्हारे सिवा और कोई स्त्री आती नहीं है । जब भी तुम ओटी में आती हो तो उसे पता रहता है कि ओटी में कौन सा "ऑपरेशन" चल रहा है ? सब कुछ जानते हुए भी वह अपने मन को वश में रख लेती है । अपनी उत्तेजनाओं पर काबू करके रखना भी कोई कम तपस्या नहीं है तरू । इसलिए मैं तो उसे एक महान तपस्वी ही मानता हूं "। 
फिर खिसियाते हुए आनंद कहने लगा "अब बहुत "लैक्चर" हो गया , तरू । अब और नहीं सहा जा रहा है । एक एक मिनट भारी पड़ रहा है । तुम कहो तो "प्रॉटेक्शन" मंगवाऊं" ? 

तरू के पास अब कोई विकल्प नहीं था । वह खामोश ही रही । आनंद ने घंटी बजाई और विभा तुरंत हाजिर हो गई । आनंद ने उसकी तरह हाथ बढ़ाया । विभा अच्छी तरह जानती थी कि आनंद को "ऑपरेशन" के समय कब किस चीज की जरूरत होती है । स्थिति देखकर विभा तुरंत समझ गई कि इस समय आनंद को क्या चाहिए ?  और बाहर जाकर उसने अपने पर्स से "वह" चीज लाकर आनंद को दे दी । आनंद ने मुस्कान से ही थैंक्स कह दिया और वह चली गईं । 

आनंद और तरू अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगे । मंजिल पर पहुंचने के बाद और थोड़ा संयत होने पर आनंद ने देखा कि तरू कुछ असंयत सी नजर आ रही है । जैसे कि वह खुश नहीं हो आज की परफॉर्मेंस से । आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था । 

आनंद को बड़ा आश्चर्य हुआ कि तरू आज नाखुश क्यों लग रही है ? ऐसी क्या बात है जिसने तरू को उद्वेलित किया हुआ है ? आखिर उसने पूछ ही लिया 
"कोई खास बात है क्या तरू ? आज तुम खुश नहीं लग रही हो । क्या इसकी वजह जान सकता हूँ मैं" ? 

तरू खामोश ही रही , कुछ भी नहीं बोली । आनंद को थोड़ा और आश्चर्य हुआ क्योंकि तरू संकोची नहीं थी । मगर पता नहीं आज क्यों संकोच कर रही थी कुछ बताने में तरू ? आखिर उसने पुनः पूछा
"साफ साफ बताओ तरू कि बात क्या है ? तुम्हारी ये खामोशी मेरी जान ले लेगी । अब जल्दी से बता भी दो" । 

तरू के चेहरे पर कई भाव आ और जा रहे थे । ऐसा लग रहा था कि जैसे वह बताना नहीं चाहती थी मगर आनंद की बात टालना भी नहीं चाहती थी । बड़ी दुविधा में लग रही थी तरू । आनंद के बार बार आग्रह करने पर वह बोली 
"माफ करना सर , पता नहीं ये हकीकत है या मेरा भ्रम कि आज आप कुछ बदले बदले से नजर आए थे" । तरू ने हिचकिचाते हुए धीरे धीरे कहा । 

अब डॉक्टर आनंद के चौंकने की बारी थी । उसे तो ऐसा महसूस नहीं हुआ था । मगर तरू कुछ कह रही है तो उसका कोई तो आधार होगा ? ऐसे ही तो नहीं कहती है तरू कुछ भी ? इसका मतलब है कि बात गंभीर है । 
"साफ साफ बताओ तरू कि क्या बात है ? मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि तुम कहना क्या चाहती हो ? मैं कहां से बदल गया हूं ? मैं तो वही हूं , आनंद । तुम्हारा आनंद" । 

तरू ने एक एक शब्द दृढता के साथ और चबा चबा कर कहा " माफ करना सर । आप आनंद तो हैं मगर आज ऐसा लगा कि आप मेरे वाले आनंद नहीं थे । कोई और आनंद थे । और मैं इस आनंद को जानती तक नहीं थी जिसे आज मैंने महसूस किया था । वैसे एक बात कहूं ? सच सच ? सुनने की हिम्मत रखेंगे" ? 

इन शब्दों को सुनकर आनंद एकदम से घबरा गया । पता नहीं क्या कहने वाली है ये तरू ? उनकी घबराहट उनके चेहरे से नजर आने लगी थी । एक प्रश्नवाचक निगाह डाली आनंद ने तरू पर । तरू जल्दी जल्दी अपनी बात रखने लगी 
"सर, आज ऐसा लगा कि आपके दिमाग में मैं नहीं थी , कोई और थी । माफ कीजिएगा सर, जो मुझे महसूस हुआ था वह मैंने सच सच बता दिया है । आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था , आज पहली बार ऐसा हुआ था इसलिए मैं थोड़ी पजल सी हो गई थी" । सब कुछ कहने के बाद अब तरू का चेहरा सामान्य हो गया था । मगर आनंद के चेहरे पर पसीने आ गए थे । उसकी चोरी पकड़ी गयी थी । 

शेष अगले अंक में 

हरि शंकर गोयल "हरि" 
23.4.22 

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8 Comments

Sandhya Prakash

29-Apr-2022 08:52 PM

👍👍👍

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Hari Shanker Goyal "Hari"

30-Apr-2022 04:30 PM

धन्यवाद मैम

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Seema Priyadarshini sahay

28-Apr-2022 08:32 PM

बेहतरीन भाग

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Hari Shanker Goyal "Hari"

28-Apr-2022 10:25 PM

Thanks mam

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Gunjan Kamal

28-Apr-2022 08:57 AM

शानदार भाग

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Hari Shanker Goyal "Hari"

28-Apr-2022 09:03 AM

🌷🌷🙏🙏

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